बीकानेर में दो दिवसीय मेडिकल सेमिनार का सफल समापन: माइक्रोबायोलॉजी में नए मापदंड और मेडिकल शिक्षा पर चर्चा
के कुमार आहूजा 2024-09-30 04:07:00
बीकानेर में दो दिवसीय मेडिकल सेमिनार का सफल समापन: माइक्रोबायोलॉजी में नए मापदंड और मेडिकल शिक्षा पर चर्चा
मेडिकल शिक्षा और माइक्रोबायोलॉजी में बदलाव जानिए बीकानेर में आयोजित सेमिनार की मुख्य बातें
बीकानेर में इंडियन एसोसिएशन ऑफ मेडिकल माइक्रोबायलॉजिस्ट राजस्थान चैप्टर द्वारा आयोजित दो दिवसीय वार्षिक सेमिनार का समापन रविवार को हुआ। इस सम्मेलन का उद्देश्य मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी के क्षेत्र में हो रहे नवीनतम बदलावों और चिकित्सा शिक्षा में सुधारों पर प्रकाश डालना था। इसके साथ ही मेडिकल छात्रों को एनएमसी (नेशनल मेडिकल काउंसिल) के मानदंडों के अनुरूप तैयार करने पर भी चर्चा की गई।
सेमिनार की प्रमुख झलकियां
बीकानेर के एसपी मेडिकल कॉलेज में आयोजित इस सेमिनार में चिकित्सा शिक्षा, शोध और माइक्रोबायोलॉजी से जुड़े कई महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की गई। आयोजन समिति की अध्यक्ष डॉ. अंजलि गुप्ता के अनुसार, इस सेमिनार में विभिन्न राज्यों से आए माइक्रोबायोलॉजिस्ट्स, डॉक्टर्स, और मेडिकल स्टूडेंट्स ने भाग लिया और अपनी विशेषज्ञता साझा की।
एनएमसी और चिकित्सा शिक्षा के नए मापदंड
सेमिनार के दूसरे दिन का मुख्य आकर्षण नेशनल मेडिकल काउंसिल (NMC) द्वारा चिकित्सा शिक्षा में किए गए परिवर्तनों पर सत्र रहा। गुजरात से आए माइक्रोबायोलॉजिस्ट डॉ. प्रवीण शाह और डॉ. सुमन सिंह ने इस विषय पर गहन चर्चा की। उन्होंने मेडिकल छात्रों को एनएमसी के नवीनतम करिक्यूलम के तहत प्रशिक्षित करने के तरीकों पर जानकारी दी। डॉ. शाह ने बताया कि एनएमसी ने मेडिकल शिक्षा में कई सुधार किए हैं, जिनका मुख्य उद्देश्य डॉक्टरों को व्यावहारिक और नैतिक रूप से सक्षम बनाना है।
दिल्ली के आईएलबीएस से आई डॉ. एकता गुप्ता ने जीनोम सिक्वेंसिंग के महत्व पर चर्चा की, जो वर्तमान में चिकित्सा अनुसंधान और निदान के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण प्रगति है। जीनोम सिक्वेंसिंग से डॉक्टर मरीजों के अनुवांशिक रोगों का सटीक निदान कर सकते हैं।
चिकित्सा शिक्षा और माइक्रोबायोलॉजी में अनुभव साझा किए गए
जिपमेर, पांडिचेरी के डॉ. राकेश सिंह ने आंतों में परजीवी संक्रमण के बारे में एक व्याख्यान दिया और मेडिकल छात्रों को इन संक्रमणों के निदान के तरीकों पर प्रशिक्षित किया। इसके अलावा, दिल्ली के लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के डॉ. रंधावा ने मेडिकल छात्रों को माइक्रोबियल टाइपिंग सिखाई, जो बैक्टीरिया की पहचान के लिए महत्वपूर्ण है।
पीबीएम अस्पताल, बीकानेर के डॉ. पी.सी. खत्री ने ब्रुसेलोसिस नामक बीमारी पर अपने अनुभव साझा किए, जो जानवरों से इंसानों में फैलती है। यह बीमारी मुख्य रूप से उन व्यक्तियों में पाई जाती है, जो पशुओं के साथ काम करते हैं, और यह संक्रमण जानवरों के दूषित दूध या मांस से फैलता है। डॉ. खत्री ने इसके निदान और रोकथाम के तरीकों पर भी प्रकाश डाला।
चंडीगढ़ पीजीआई की डॉ. अर्चन अंगरू ने ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में बढ़ने वाले बैक्टीरिया और उनके कारण होने वाले संक्रमणों के निदान के बारे में जानकारी दी। जयपुर की डॉ. स्मिता सूद ने अस्पतालों में होने वाले संक्रमणों और उनके प्रबंधन पर चर्चा की, जो कि वर्तमान चिकित्सा व्यवस्था में एक बड़ी चुनौती है।
पोस्टर और क्विज प्रतियोगिता में उत्कृष्टता के लिए सम्मान
इस सेमिनार के समापन समारोह में विभिन्न प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया गया। पोस्टर और क्विज प्रतियोगिता के विजेता प्रतिभागियों को सम्मानित किया गया। एसपी मेडिकल कॉलेज, बीकानेर के अंशु अग्रवाल और डॉ. सुभाष सैनी को उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए पुरस्कृत किया गया। इसके साथ ही, असम से डॉ. ऐश्वर्या, भोपाल से डॉ. पायल राजपूत और जोधपुर से जयंत रामावत को भी सम्मानित किया गया। यह प्रतियोगिताएं छात्रों के लिए उनकी शैक्षणिक और व्यावहारिक ज्ञान का परीक्षण करने का एक मंच थीं।
कार्यक्रम के सफल आयोजन में सभी का योगदान
समापन समारोह में आयोजन समिति की सचिव डॉ. तरुणा स्वामी ने सभी प्रतिभागियों, डॉक्टरों, और आयोजन में सहयोग देने वाले कर्मचारियों का धन्यवाद किया। उन्होंने विशेष रूप से रेजिडेंट डॉक्टर्स की सराहना की, जिन्होंने इस कार्यक्रम के सफल आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
भविष्य की दिशा
इस वार्षिक सेमिनार ने चिकित्सा और माइक्रोबायोलॉजी के क्षेत्र में नई संभावनाओं को उजागर किया। एनएमसी के नए मापदंडों के आधार पर मेडिकल छात्रों को और अधिक व्यावहारिक अनुभव और नैतिकता पर आधारित प्रशिक्षण प्राप्त करने का अवसर मिलेगा। इस प्रकार के सेमिनार न केवल चिकित्सकों को नवीनतम शोध और तकनीकों से अवगत कराते हैं, बल्कि छात्रों को भी उनके कौशल को निखारने का अवसर प्रदान करते हैं।
इस आयोजन का मुख्य संदेश यह था कि चिकित्सा और माइक्रोबायोलॉजी के क्षेत्र में निरंतर शोध और नई तकनीकों का विकास बेहद जरूरी है, ताकि मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें और चिकित्सा शिक्षा में सुधार हो सके।