राजस्थान हाईकोर्ट ने SBI अधिकारी की सेवा समाप्ति का आदेश रद्द किया, अनुशासनात्मक सजा बहाल
के कुमार आहूजा 2024-09-29 06:22:46
क्या कोई सरकारी अधिकारी केवल एक लाइन की सलाह पर अपनी नौकरी खो सकता है? राजस्थान हाईकोर्ट के हालिया आदेश से यह सवाल उठता है, जहां एसबीआई बैंक के एक अधिकारी की सेवा समाप्ति का मामला सामने आया। यह मामला तब और गंभीर हो गया जब यह खुलासा हुआ कि अधिकारी को बिना समुचित प्रक्रिया अपनाए ही पद से हटाया गया था। हाईकोर्ट ने इस कार्रवाई को न केवल अवैध बताया, बल्कि अधिकारी की पूर्व सजा को बहाल करने का आदेश भी दिया। आइए इस मामले को विस्तार से समझते हैं।
मामला क्या था?
इस घटना की शुरुआत वर्ष 2016 में हुई, जब एसबीआई बैंक में अधिकारी वैभव सिंह के खिलाफ कुछ आरोप लगाए गए। इन आरोपों की जांच के लिए एक जांच अधिकारी नियुक्त किया गया, जिसने कुछ आरोपों को प्रमाणित पाया। इसके बाद, अनुशासनात्मक अधिकारी ने 7 जुलाई, 2017 को वैभव सिंह के वेतनमान को एक साल के लिए कम करने की सजा दी। हालांकि, इस सजा को आगे मुख्य सतर्कता अधिकारी (सीवीओ) के पास भेजा गया।
मुख्य सतर्कता अधिकारी की सिफारिश और विवाद:
सीवीओ ने अनुशासनात्मक अधिकारी के आदेश की समीक्षा की और मात्र एक लाइन में सलाह दी कि वैभव सिंह को सेवा से हटाया जाना चाहिए। इस सलाह के आधार पर, 5 दिसंबर, 2017 को अनुशासनात्मक अधिकारी ने वैभव सिंह की सेवा समाप्त कर दी।
यहां पर विवाद की जड़ यही थी कि मुख्य सतर्कता अधिकारी ने बिना विस्तृत कारण दिए, मात्र एक सिफारिश के आधार पर सेवा समाप्ति का आदेश दिया, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ था। वैभव सिंह को इस सिफारिश की जानकारी तक नहीं दी गई और न ही उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका मिला।
हाईकोर्ट में मामला और याचिका का तर्क:
वैभव सिंह ने इस आदेश के खिलाफ राजस्थान हाईकोर्ट में याचिका दायर की। उनके वकील सुनील समदडिया ने अदालत के सामने तर्क दिया कि अनुशासनात्मक अधिकारी ने शुरू में केवल वेतनमान कम करने की सजा दी थी, लेकिन मुख्य सतर्कता अधिकारी की एक पंक्ति की सिफारिश के आधार पर सेवा समाप्त कर दी गई। इस प्रक्रिया में वैभव सिंह को उचित सुनवाई और सूचना का मौका नहीं दिया गया, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन है
याचिका में यह भी कहा गया कि सेवा समाप्ति का निर्णय अनुचित था, क्योंकि अधिकारी को सजा की गंभीरता के बारे में कोई पूर्व जानकारी नहीं दी गई थी। इसके अलावा, अनुशासनात्मक अधिकारी की ओर से दी गई सजा में भी कोई दोष नहीं था, लेकिन मुख्य सतर्कता अधिकारी के हस्तक्षेप के बाद यह फैसला बदल गया।
एसबीआई का पक्ष:
एसबीआई की ओर से अधिवक्ता अनिता अग्रवाल ने तर्क दिया कि वैभव सिंह के खिलाफ आरोप प्रमाणित थे, इसलिए उनकी सेवा समाप्त की गई। बैंक का यह भी कहना था कि वैभव सिंह के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश मुख्य सतर्कता अधिकारी ने तथ्यों के आधार पर की थी, जो कि जांच के परिणाम पर आधारित थी।
हाईकोर्ट का आदेश:
जस्टिस अनूप ढंड की एकलपीठ ने मामले की गहराई से जांच करने के बाद पाया कि वैभव सिंह की सेवा समाप्ति का आदेश अवैध था। अदालत ने इस आदेश को रद्द करते हुए कहा कि अनुशासनात्मक अधिकारी की ओर से दी गई सजा पर्याप्त थी और इसमें किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए था। अदालत ने स्पष्ट किया कि मुख्य सतर्कता अधिकारी की सिफारिश केवल एक पंक्ति की थी, जिसमें विस्तृत कारण नहीं दिए गए थे। इस वजह से वैभव सिंह को अपने पक्ष में कुछ भी कहने का अवसर नहीं मिला, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है।
अदालत ने सेवा समाप्ति के आदेश को रद्द करते हुए वैभव सिंह के एक साल के लिए वेतनमान कम करने की पूर्व सजा को बहाल कर दिया। इसके साथ ही अपीलीय अधिकारी द्वारा दी गई सजा को भी खारिज कर दिया गया।
यह मामला यह बताता है कि सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकारियों को सजा देने से पहले समुचित प्रक्रिया का पालन करना कितना महत्वपूर्ण है। राजस्थान हाईकोर्ट का यह फैसला यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी अधिकारी को बिना उचित सुनवाई और स्पष्ट कारणों के बिना सेवा से नहीं हटाया जा सकता। इसके अलावा, यह मामला उन संस्थानों के लिए भी एक संदेश है जो अनुशासनात्मक कार्रवाई करते समय प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों की अनदेखी करते हैं।