सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: पीएमएलए के दुरुपयोग पर चिंता, जमानत के नियमों में बदलाव की आवश्यकता
के कुमार आहूजा 2024-09-27 10:09:22
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: पीएमएलए के दुरुपयोग पर चिंता, जमानत के नियमों में बदलाव की आवश्यकता
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है जिसमें उसने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के द्वारा धनशोधन अधिनियम (पीएमएलए) के दुरुपयोग पर गहरी चिंता जताई है। यह निर्णय तमिलनाडु के पूर्व मंत्री सेंथिल बालाजी को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जमानत देते हुए आया है। न्यायालय ने कहा कि जब किसी आरोपी के खिलाफ मामले की सुनवाई अत्यधिक समय तक लंबित रहती है, तो यह संवैधानिक अदालतों की जिम्मेदारी है कि वे आरोपी को जमानत देने की शक्ति का उपयोग करें।
संवैधानिक अदालतों का दायित्व
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब पीएमएलए के तहत शिकायत की सुनवाई एक उचित सीमा से अधिक लंबी हो जाती है, तो यह केवल संवैधानिक अदालतें ही हैं जो अपनी असाधारण शक्तियों का प्रयोग कर सकती हैं। न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि जमानत नियम है और जेल अपवाद है। इस टिप्पणी का विशेष महत्व है क्योंकि यह न्यायालय के दृष्टिकोण को दर्शाता है कि कानून का सही उपयोग कैसे किया जाना चाहिए।
मामला: सेंथिल बालाजी की गिरफ्तारी
सेंथिल बालाजी पर आरोप है कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान एक 'कैश फॉर जॉब' स्कीम का संचालन किया, जिसके तहत उन्होंने नौकरी की तलाश कर रहे लोगों से पैसे लिए। ईडी ने उन्हें जून 2023 में गिरफ्तार किया था, जब यह मामला सामने आया। उनके खाते में 1.34 करोड़ रुपये की जमा राशि को लेकर भी सवाल उठाए गए हैं, जिसमें बालाजी ने इसे अपनी वैध आय बताया है।
अदालती प्रक्रियाओं में देरी की चिंता
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि लंबे समय तक मुकदमे का लंबित रहना और जमानत की उच्च सीमा साथ में नहीं चल सकते। न्यायालय ने कहा कि जब किसी आरोपी को बिना किसी वैध कारण के लंबे समय तक हिरासत में रखा जाता है, तो यह न केवल न्याय की प्रक्रिया को बाधित करता है, बल्कि आरोपी के मूल अधिकारों का भी उल्लंघन करता है।
पीएमएलए के तहत जमानत के नियम
सीधे शब्दों में, पीएमएलए की धारा 45(1) के अंतर्गत जमानत देने के लिए जो कठोर प्रावधान हैं, वे इस तरह के दुरुपयोग के लिए रास्ता नहीं बनना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि केवल ऐसे मामलों में ही जमानत से इनकार किया जा सकता है जब यह स्पष्ट हो कि आरोपी ने मामले के सबूतों से छेड़छाड़ की है।
आपराधिक न्याय की प्रक्रिया में बदलाव की आवश्यकता
न्यायालय ने यह भी कहा कि अगर कोई मामला न्यायालय में लंबित है, तो आरोपी को लंबे समय तक कैद में रखने का कोई औचित्य नहीं है। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष को यह साबित करने का दायित्व है कि आरोपी की जमानत दिए जाने से मामले की सुनवाई पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। यदि मुकदमे की सुनवाई में बहुत अधिक देरी हो रही है, तो यह आरोपी के लिए न्याय की प्रक्रिया को बाधित करने का कारण बन सकता है।
न्यायपालिका का नैतिक दायित्व
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान का भाग III व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए है। न्यायालय ने न्यायाधीशों की विवेकाधीनता पर जोर दिया कि वे उचित तथ्यों के आधार पर जमानत देने की शक्ति का उपयोग कर सकते हैं, विशेषकर जब मामला संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन का हो।
एक नई दिशा की ओर
इस निर्णय के माध्यम से सर्वोच्च अदालत ने न्यायिक प्रक्रिया में संतुलन बनाए रखने और पीएमएलए जैसे कठोर कानूनों के दुरुपयोग को रोकने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है। यह मामला न केवल सेंथिल बालाजी के लिए, बल्कि सभी आरोपियों के लिए एक मिसाल के रूप में कार्य करेगा।