सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 से हर महिला को मिलेगा संरक्षण


के कुमार आहूजा  2024-09-27 08:05:41



सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 से हर महिला को मिलेगा संरक्षण

सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005, किसी भी महिला की धार्मिक या सामाजिक पृष्ठभूमि पर ध्यान दिए बिना, हर महिला पर लागू होता है। यह फैसला महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा और उनके भरण-पोषण के लिए अहम साबित हुआ है। इस फैसले ने घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं के लिए न्याय का एक नया मार्ग प्रशस्त किया है।

घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की व्यापकता

घरेलू हिंसा अधिनियम 2005, महिलाओं को उनके घरों में हिंसा से सुरक्षा प्रदान करने के लिए लाया गया था। यह अधिनियम महिलाओं को उनके मौलिक अधिकारों के संरक्षण के लिए बनाया गया है, चाहे उनका धर्म या जाति कुछ भी हो। सुप्रीम कोर्ट के इस ताजा फैसले ने यह साफ कर दिया है कि कानून हर महिला पर लागू होगा, और उसकी सुरक्षा के लिए जरूरी कदम उठाए जाएंगे। यह फैसला एक महिला द्वारा दायर याचिका पर आधारित था, जिसमें उसने कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी।

मामले की पृष्ठभूमि

मामले की शुरुआत तब हुई जब एक महिला ने घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत भरण-पोषण और मुआवजे की मांग की। इस पर 2015 में एक मजिस्ट्रेट ने महिला के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उसके पति को प्रति माह 12 हजार रुपये का भरण-पोषण और 1 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया। यह आदेश तब दिया गया जब महिला ने आरोप लगाया कि उसे घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ा है और उसे वित्तीय सहायता की जरूरत है।

पति की अपील और उच्च न्यायालय की कार्यवाही

महिला के पति ने मजिस्ट्रेट के इस आदेश के खिलाफ अपील दायर की थी। उसने घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 25 के तहत आदेश में संशोधन की मांग की, यह दावा करते हुए कि परिस्थितियां बदल गई हैं। हालांकि, मजिस्ट्रेट ने उसकी अपील खारिज कर दी, जिसके बाद पति ने अपीलीय अदालत का दरवाजा खटखटाया। अपीलीय अदालत ने पति की अपील को आंशिक रूप से स्वीकार किया और दोनों पक्षों को अपने साक्ष्य पेश करने का निर्देश दिया।

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, तो न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और एन कोटिस्वर की पीठ ने एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाते हुए कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम किसी भी महिला की सामाजिक या धार्मिक पृष्ठभूमि पर निर्भर नहीं करता है। अदालत ने यह भी कहा कि भरण-पोषण के आदेशों में संशोधन या निरस्तीकरण तभी हो सकता है जब परिस्थितियों में कोई वास्तविक बदलाव हो।

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय क्यों महत्वपूर्ण है?

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने घरेलू हिंसा अधिनियम की व्यापकता को स्पष्ट किया है। यह फैसला यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी महिला को उसके अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता, चाहे उसकी धार्मिक और सामाजिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो। यह महिलाओं के लिए न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम है और इससे उन्हें घरेलू हिंसा के खिलाफ कानूनी सुरक्षा मिलती है।

महिला के अधिकारों की रक्षा

यह फैसला महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 का उद्देश्य महिलाओं को मानसिक, शारीरिक, और आर्थिक शोषण से बचाना है। इस कानून के तहत महिलाएं भरण-पोषण और मुआवजे की मांग कर सकती हैं, जो उनके लिए एक जीवन रेखा साबित होती है।

धारा 12 और धारा 25 के महत्व

धारा 12 के तहत, महिलाएं घरेलू हिंसा से सुरक्षा और भरण-पोषण के लिए अदालत से मदद मांग सकती हैं। इस धारा के तहत मजिस्ट्रेट पीड़ित महिला के लिए भरण-पोषण और मुआवजे का आदेश दे सकते हैं। दूसरी तरफ, धारा 25 के तहत, आदेश में संशोधन या निरस्तीकरण की मांग की जा सकती है, यदि परिस्थितियों में कोई महत्वपूर्ण बदलाव हुआ हो। इस मामले में, पति ने धारा 25 के तहत आदेश में संशोधन की मांग की थी, जिसे मजिस्ट्रेट और उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया।

सामाजिक और कानूनी प्रभाव

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल कानूनी रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका समाज पर भी गहरा प्रभाव पड़ेगा। यह फैसला उन सभी महिलाओं के लिए एक मजबूत संदेश है, जो घरेलू हिंसा का शिकार हो रही हैं। यह कानून महिलाओं को उनके घरों में भी सुरक्षा प्रदान करता है, जहां उन्हें सबसे सुरक्षित महसूस करना चाहिए।

महिलाओं के लिए न्याय का नया मार्ग

यह ऐतिहासिक फैसला एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जहां महिलाओं को उनके मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए सशक्त बनाया गया है। यह घरेलू हिंसा के खिलाफ महिलाओं के संघर्ष को एक नई पहचान देता है। इस फैसले ने यह साफ कर दिया है कि अदालतें महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं।

न्यायालय की प्रक्रिया और चुनौती

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एक स्पष्ट और मजबूत निर्णय दिया है, लेकिन महिलाओं के लिए न्याय की राह हमेशा आसान नहीं होती। इस मामले में भी, महिला को उच्च न्यायालय से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़नी पड़ी। न्याय की इस प्रक्रिया में उसे कई बाधाओं का सामना करना पड़ा, लेकिन अंत में सुप्रीम कोर्ट का फैसला उसकी जीत साबित हुआ।

घरेलू हिंसा के खिलाफ जागरूकता

इस मामले से यह साफ हो गया है कि देश में घरेलू हिंसा के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है। कई महिलाएं अभी भी इस कानून के बारे में नहीं जानतीं और घरेलू हिंसा का सामना करती रहती हैं। ऐसे मामलों में जागरूकता और कानूनी सहायता की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होती है।

महिलाओं के लिए न्याय की दिशा में अहम कदम

सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला एक उदाहरण है कि कैसे न्यायपालिका महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए खड़ी है। घरेलू हिंसा अधिनियम 2005, महिलाओं के लिए एक मजबूत सुरक्षा कवच है, और इस फैसले ने यह साबित कर दिया है कि कोई भी महिला इस अधिनियम के तहत संरक्षण पाने के अधिकार से वंचित नहीं रह सकती। चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या सामाजिक पृष्ठभूमि से आती हो, यह कानून सभी महिलाओं के लिए समान रूप से लागू होता है।


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