भारत में 50 से अधिक लोकप्रिय दवाएं गुणवत्ता परीक्षण में असफल, जानें पूरी सच्चाई
के कुमार आहूजा 2024-09-26 07:56:24
भारत में 50 से अधिक लोकप्रिय दवाएं गुणवत्ता परीक्षण में असफल, जानें पूरी सच्चाई
जब भी हमें बुखार होता है, पैरासिटामोल एक आम इलाज होता है। लेकिन क्या हो अगर आपको पता चले कि आपकी भरोसेमंद दवाएं ही गुणवत्ता परीक्षण में फेल हो गई हैं? हाल ही में सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (CDSCO) ने 50 से अधिक दवाओं को गुणवत्ता परीक्षण में असफल घोषित किया है। इनमें बुखार, उच्च रक्तचाप और मधुमेह जैसी बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली कई महत्वपूर्ण दवाएं शामिल हैं। आइए जानते हैं, कैसे ये दवाएं हमारे स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकती हैं और इस घटना से दवा उद्योग पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
सूचीबद्ध प्रमुख दवाइयां:
CDSCO ने हाल ही में अपने मासिक औषधि अलर्ट सूची में विभिन्न लोकप्रिय दवाओं को "गुणवत्ता परीक्षण में असफल" के रूप में सूचीबद्ध किया है। इनमें से प्रमुख दवाएं हैं: पैरासिटामोल 500 एमजी, एंटीएसिड पैन-डी, विटामिन सी और डी3 की शेल्कल टैबलेट्स, मधुमेह की दवा ग्लिमेपिराइड और उच्च रक्तचाप की दवा टेल्मिसर्टन।
ये दवाएं भारत के शीर्ष दवा निर्माताओं द्वारा निर्मित की गई थीं, जैसे हेटेरो ड्रग्स, एल्केम लैबोरेटरीज, हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स लिमिटेड, कर्नाटक एंटीबायोटिक्स एंड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड और अन्य। पेट के संक्रमण के इलाज के लिए व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली मेट्रोनिडाजोल, जिसे हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स लिमिटेड (HAL) ने निर्मित किया था, भी इस सूची में शामिल हैं।
दवाओं के विफल होने का कारण:
CDSCO नियमित तौर पर दवाओं का सैंपलिंग और परीक्षण करता है, जिसमें से 53 प्रमुख दवाएं इस बार गुणवत्ता मानकों पर खरी नहीं उतरी। कोलकाता की औषधि परीक्षण प्रयोगशाला ने एल्केम हेल्थ साइंस की एंटीबायोटिक्स क्लैवम 625 और पैन डी को नकली घोषित किया। इसी प्रयोगशाला ने हेटेरो द्वारा निर्मित सेपोडेम एक्सपी 50 ड्राई सस्पेंशन को भी घटिया गुणवत्ता का बताया, जो बच्चों में बैक्टीरियल संक्रमण के इलाज के लिए दी जाती है।
इन दवाओं के असफल होने से उपभोक्ताओं में डर फैल गया है। खासकर जब बड़ी कंपनियों की प्रतिष्ठित दवाएं भी मानकों पर खरी नहीं उतर रही हैं। पैरासिटामोल जैसी रोजमर्रा की दवा को असफल होना एक गंभीर विषय है, क्योंकि यह सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं में से एक है।
दवा कंपनियों की प्रतिक्रिया:
जब दवा कंपनियों से पूछा गया तो उन्होंने इन परिणामों से असहमति जताई। कंपनियों का कहना है कि इन दवाओं के नकली संस्करण बाजार में हो सकते हैं, जो असली दवाओं की जगह उपयोग में लाए जा रहे हैं। दवा कंपनियों ने यह भी दावा किया कि उनके द्वारा जो दवाएं बनाई गई हैं, वे गुणवत्तापूर्ण हैं, और फेल होने वाली दवाएं नकली हो सकती हैं।
हालांकि, दवा नियामक ने अपने परीक्षण के बाद इसे प्रमाणित किया है कि ये दवाएं उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य के लिए खतरा हैं। यह घटना दर्शाती है कि दवा क्षेत्र में अभी भी बहुत सुधार की आवश्यकता है।
नकली दवाओं की समस्या:
भारत में नकली दवाओं का बाजार तेजी से फैल रहा है। हाल की घटनाओं ने इस बात को फिर से उजागर किया है कि नकली दवाओं की समस्या कितनी गंभीर हो सकती है। नकली दवाएं केवल रोगियों के स्वास्थ्य के लिए खतरा नहीं हैं, बल्कि वे दवा उद्योग की साख को भी नुकसान पहुंचाती हैं।
दवा कंपनियों और सरकार को मिलकर इस समस्या का समाधान करना होगा ताकि उपभोक्ताओं को सुरक्षित और प्रभावी दवाएं मिल सकें। नकली दवाओं की पहचान करना कठिन होता है, खासकर जब वे असली दवाओं की पैकेजिंग में उपलब्ध होती हैं। इसके लिए सरकार को एक सख्त निगरानी और नियंत्रण प्रणाली लागू करनी होगी।
उपभोक्ताओं के लिए चेतावनी:
CDSCO ने उपभोक्ताओं को चेतावनी दी है कि वे गुणवत्ता प्रमाणित दवाओं का ही उपयोग करें। उपभोक्ताओं को जागरूक रहना चाहिए और केवल प्रमाणित और सुरक्षित स्रोतों से ही दवाएं खरीदनी चाहिए। नकली दवाओं की पहचान करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन कुछ संकेत, जैसे पैकेजिंग में त्रुटि, एक्सपायरी डेट या निर्माता की जानकारी में अनियमितताएं, इनकी पहचान में सहायक हो सकती हैं।
भविष्य की दिशा:
दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए दवा कंपनियों को और अधिक सतर्कता बरतने की जरूरत है। सरकार को भी इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों। भारतीय दवा उद्योग दुनिया में सबसे बड़े दवा उत्पादकों में से एक है, और इस क्षेत्र की विश्वसनीयता बनाए रखना आवश्यक है।
नियामक प्राधिकरणों को सख्त गुणवत्ता नियंत्रण और परीक्षण प्रक्रियाओं को लागू करना होगा ताकि दवाओं की गुणवत्ता में सुधार हो सके। इसके अलावा, उपभोक्ताओं को भी जागरूक होना चाहिए और दवाओं के उपयोग से पहले उनकी गुणवत्ता की जांच करनी चाहिए।
बहरहाल, यह रिपोर्ट हमें यह सिखाती है कि हमारे स्वास्थ्य के लिए सबसे बुनियादी दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करना कितना महत्वपूर्ण है। भारतीय औषधि नियामक CDSCO द्वारा उठाए गए कदम सराहनीय हैं, लेकिन इस दिशा में अभी भी लंबा रास्ता तय करना बाकी है। जब तक दवा कंपनियां और उपभोक्ता दोनों मिलकर इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लेते, तब तक नकली दवाओं का खतरा बना रहेगा।
यह भी स्पष्ट हो गया है कि नकली दवाओं की समस्या इतनी बड़ी हो गई है कि इसका समाधान करना आसान नहीं होगा। इसके लिए एक समन्वित प्रयास की जरूरत है, जिसमें सरकार, दवा उद्योग और उपभोक्ता तीनों की भूमिका महत्वपूर्ण है।