क्या अब बनेगी यह राष्ट्रभाषा? हिंदी का उत्कर्ष: 75 वर्षों में हुई प्रगति


के कुमार आहूजा  2024-09-24 05:03:56



क्या अब बनेगी यह राष्ट्रभाषा? हिंदी का उत्कर्ष: 75 वर्षों में हुई प्रगति

हिंदी भाषा की यात्रा में आज एक महत्वपूर्ण मोड़ आया, जब राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, बीकानेर में हिन्दी सप्ताह का समापन समारोह धूमधाम से मनाया गया। इस समारोह में प्रमुख वक्ताओं ने हिंदी की प्रगति, रोजगार के अवसर, और इसे राष्ट्रभाषा बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। क्या हम सच में हिंदी को उसका सही स्थान दिला सकते हैं?

75 वर्षों की यात्रा की समीक्षा

आज के समारोह में केंद्र के प्रभागाध्यक्ष डॉ. एस. सी. मेहता ने हिंदी को राजभाषा बने 75 वर्ष पूरे होने पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि इस दौरान हिंदी ने न केवल शब्दकोश में बल्कि बोलचाल में भी अपार प्रगति की है। यह आज विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषा बन चुकी है, फिर भी इसका राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं बन पाया है।

राजभाषा से राष्ट्रभाषा की ओर

डॉ. मेहता ने जोर देकर कहा कि आज हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने के लिए उसी इच्छा शक्ति की आवश्यकता है, जो धारा 370 को समाप्त करने में दिखी। उनका मानना है कि यह सिर्फ एक दिन की बात है। उन्होंने यह भी बताया कि आज हिंदी न केवल संवाद का माध्यम है, बल्कि यह रोजगार सृजन का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई है।

रोजगार के अवसर और हिंदी का बढ़ता महत्व

डॉ. मेहता ने बताया कि पहले जहां केवल अंग्रेजी में प्रश्न पत्र और साक्षात्कार होते थे, अब हिंदी में भी ऐसा संभव हो गया है। उन्होंने कहा, "हिंदी अब न केवल संस्कृति का हिस्सा है, बल्कि यह रोजगार के अवसरों को भी बढ़ावा दे रही है।"

भाषा का सम्मान

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि, राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. राजेश कुमार सावल ने भी हिंदी को बढ़ावा देने के लिए अपने प्रयास साझा किए। उन्होंने कहा कि वह खुद हर दिन हिंदी में अभिवादन करते हैं और किसानों के लिए हिंदी में प्रकाशन तैयार करते हैं।

हिंदी का संरक्षण: शोध और नवाचार

शुष्क क्षेत्र अनुसन्धान केंद्र के अध्यक्ष डॉ. नव रतन पंवार ने हिंदी भाषा को लेकर अपने केंद्र पर किए गए नवाचारों की जानकारी दी। उन्होंने कहा, "हिंदी से ज्यादा शुद्ध हम लोगों को और कुछ आता भी नहीं है।"

हिंदी के प्रवर्तन में चुनौतियाँ

केंद्रीय शुष्क बागवानी के पूर्व राजभाषा अधिकारी श्री प्रेम प्रकाश परिक ने बताया कि हिंदी के प्रवर्तन में क्या प्रयास किए जा रहे हैं, साथ ही उन्होंने उन प्रयासों के बाधाओं का भी जिक्र किया।

विशेष पुरस्कार वितरण

समारोह के दौरान, परिसर के राजभाषा अधिकारी सत्यनारायण पासवान ने केंद्रीय गृह मंत्री का संदेश पढ़कर सुनाया। हिंदी शुद्ध-अशुद्ध लेखन और पोस्टर प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कृत किया गया।

कार्यक्रम का संचालन

आज के कार्यक्रम का संचालन श्री सुहेब कुरेशी ने किया। इस अवसर पर डॉ. रमेश, डॉ. राव, डॉ. कुट्टी, डॉ. जितेन्द्र सिंह और केंद्र के अन्य अधिकारी और कर्मचारी भी उपस्थित रहे।

हिंदी का विकास और इसका बढ़ता महत्व यह दर्शाता है कि यह केवल एक भाषा नहीं, बल्कि एक संस्कृति का प्रतीक है। समारोह में किए गए विचार विमर्श से यह स्पष्ट होता है कि हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। यह सिर्फ एक भाषा का सवाल नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक पहचान का भी प्रश्न है।


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