अनूपगढ़ में हीमोफिलिया कैंप: स्वास्थ्य जागरूकता की नई पहल, एक उम्मीद की किरण  


के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा  2024-09-23 21:44:37



अनूपगढ़ में हीमोफिलिया कैंप: स्वास्थ्य जागरूकता की नई पहल, एक उम्मीद की किरण  

हीमोफिलिया एक गंभीर आनुवंशिक रक्त विकार है, लेकिन इस पर जागरूकता बढ़ाने के प्रयास निरंतर जारी हैं। हाल ही में, बीकानेर की हीमोफिलिया सोसायटी और इंटास फाउंडेशन ने अनूपगढ़ में एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया, जिसमें निशुल्क फेक्टर वितरण, फिजियोथेरेपी किट वितरण और इंजेक्शन लगाने का प्रशिक्षण शामिल था। यह कार्यक्रम न केवल हीमोफिलिया से पीड़ित व्यक्तियों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह स्वास्थ्य क्षेत्र में जागरूकता फैलाने की दिशा में भी महत्वपूर्ण है।

कार्यक्रम का आयोजन

हीमोफिलिया सोसायटी बीकानेर और इंटास फाउंडेशन के संयुक्त प्रयास से आयोजित इस कार्यक्रम का स्थान था अग्रवाल धर्मशाला, अनूपगढ़। कार्यक्रम में कुल 40 हीमोफिलिक लोगों ने भाग लिया, जो इस रोग से प्रभावित हैं। मुख्य अतिथि रवि व्यास और अन्य उपस्थित डॉक्टरों ने इस अवसर पर अपने विचार साझा किए। कार्यक्रम का संचालन समाज के सचिव संतोष स्वामी ने किया।

प्रमुख अतिथियों की उपस्थिति

कार्यक्रम में डॉ. मुरलीधर और डॉ. इंद्रजीत सिंह जैसे प्रमुख फिजियोथेरपिस्ट भी उपस्थित थे, जिन्होंने इस विषय पर अपनी विशेषज्ञता साझा की। इंटास कंपनी की ओर से सूरज कुमार और देवेश ने भी कार्यक्रम में सक्रिय भागीदारी की। इस अवसर पर सचिव संतोष स्वामी ने कहा कि नविन पारीक (कोऑर्डिनेटर) के प्रयासों से यह शिविर सफलतापूर्वक आयोजित किया गया।

सम्मानित व्यक्तित्व

कार्यक्रम के अंत में, अध्यक्ष रवि व्यास ने नविन पारीक को प्रतीक चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया। उन्होंने कहा कि नविन की मेहनत और समर्पण के कारण ही इस शिविर का आयोजन संभव हो सका।

हीमोफिलिया की जानकारी

हीमोफिलिया एक आनुवंशिक विकार है जिसमें रक्त का जमना सही तरीके से नहीं होता। इसे आमतौर पर पुरुषों में देखा जाता है, जबकि महिलाएं इस रोग के संवाहक का काम करती हैं। हीमोफिलिया के दो प्रमुख प्रकार होते हैं:

हीमोफिलिया ए (क्लासिक हीमोफिलिया) - इसमें थक्का बनाने वाले कारक 8 की कमी होती है।

हीमोफिलिया बी - इसे क्रिसमस रोग भी कहा जाता है, जिसमें थक्का बनाने वाले कारक 9 की कमी होती है।

हीमोफिलिया से पीड़ित व्यक्ति को चोट या सर्जरी के बाद रक्तस्राव रोकने में अधिक समय लगता है।

रॉयल डिजीज़ की पहचान

हीमोफिलिया को "रॉयल डिजीज़" भी कहा जाता है क्योंकि इंग्लैंड की रानी विक्टोरिया इसकी वाहक थीं और उनके परिवार में कई लोग इस रोग से प्रभावित थे। इस बीमारी की खोज 1803 में फ़िलाडेल्फ़िया के चिकित्सक जॉन कॉनराड ओटो ने की थी।

कार्यक्रम का महत्व

यह कार्यक्रम सिर्फ निशुल्क फेक्टर वितरण तक सीमित नहीं था, बल्कि इसमें फिजियोथेरेपी कीट और इंजेक्शन लगाने का प्रशिक्षण भी दिया गया। इससे हीमोफिलिया से पीड़ित व्यक्तियों को अपनी स्थिति को बेहतर ढंग से समझने और प्रबंधित करने में मदद मिलेगी।

स्वास्थ्य जागरूकता

इस तरह के कार्यक्रम स्वास्थ्य जागरूकता के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। ये न केवल हीमोफिलिया के प्रति जागरूकता फैलाने में मदद करते हैं, बल्कि लोगों को इस रोग से संबंधित सही जानकारी भी प्रदान करते हैं। इसके अलावा, यह भी महत्वपूर्ण है कि लोग इस रोग के उपचार और प्रबंधन के तरीकों को समझें।

बहरहाल, हीमोफिलिया सोसायटी और इंटास फाउंडेशन का यह कार्यक्रम पीड़ित व्यक्तियों की जागरूकता की दिशा में सकारात्मक कदम है। यह न केवल प्रभावित व्यक्तियों के लिए सहारा प्रदान करता है, बल्कि समाज में इस विकार के प्रति जागरूकता फैलाने का कार्य भी करता है। ऐसे कार्यक्रमों की आवश्यकता है ताकि हम सभी मिलकर स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों का सामना कर सकें और एक बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकें।


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