विट्रिफाइड भ्रूण से भारत में पहली बार घोड़े का जन्म, वैज्ञानिकों की टीम ने रचा इतिहास
के कुमार आहूजा 2024-09-22 07:45:44
विट्रिफाइड भ्रूण से भारत में पहली बार घोड़े का जन्म, वैज्ञानिकों की टीम ने रचा इतिहास
♦ बीकानेर में घोड़े का जन्म: विट्रिफाइड तकनीक से पैदा हुआ देश का पहला बछेड़ा
♦ यह तकनीक घोड़ों की घटती संख्या के लिए बनेगी संजीवनी
राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (एनआरसीई), बीकानेर में वैज्ञानिकों ने आज एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की। विट्रिफाइड (फ्रोजन) भ्रूण स्थानांतरण तकनीक के माध्यम से भारत में पहली बार एक घोड़े का बछेड़ा पैदा हुआ। इस बछेड़े का नाम राज-शीतल रखा गया है, जिसका जन्म वजन 20 किलोग्राम है।
उन्नत तकनीक से घोड़े के संरक्षण की दिशा में बड़ा कदम
देश में पहली बार घोड़ी को फ्रोजन सीमन (जमा हुआ वीर्य) से गर्भित कर, भ्रूण को 7.5 वें दिन फ्लश किया गया। इसके बाद भ्रूण को अनुकूलित क्रायोडिवाइस में विट्रिफाइ किया गया और तरल नाइट्रोजन में जमा दिया गया। करीब दो महीने बाद भ्रूण को पिघलाया गया और सिंक्रनाइज़ड सरोगेट घोड़ी में स्थानांतरित किया गया, जिससे घोड़ी गर्भवती हुई और स्वस्थ बछेड़े का जन्म हुआ।
वैज्ञानिकों की टीम ने रचा इतिहास
इस महत्वपूर्ण उपलब्धि के पीछे डॉ. टी राव तालुड़ी की अगुवाई में एक वैज्ञानिक टीम का हाथ है। टीम में डॉ. सज्जन कुमार, डॉ. आर के देदड़, डॉ. जितेंद्र सिंह, डॉ. एम कुट्टी, डॉ. एस सी मेहता, डॉ. टी के भट्टाचार्य और पासवान शामिल थे। इस टीम ने अब तक 20 मारवाड़ी घोड़ों और 3 जांस्कारी घोड़ों के भ्रूणों को सफलतापूर्वक विट्रिफाई किया है।
भारत में घटती घोड़ों की संख्या: चिंता का विषय
भारत में घोड़ों की आबादी तेजी से घट रही है। 2012 से 2019 की पशुधन गणना के आंकड़ों के अनुसार, इस दौरान घोड़ों की संख्या में 52.71% की कमी आई है। ऐसे में स्वदेशी घोड़ों की नस्लों के संरक्षण के लिए यह तकनीक एक बड़ा समाधान बन सकती है।
विट्रिफिकेशन तकनीक: घोड़ों के संरक्षण में वरदान
विट्रिफिकेशन तकनीक के तहत भ्रूण को क्रायोप्रिजर्वेशन के माध्यम से जमा दिया जाता है, जिसे भविष्य में इस्तेमाल किया जा सकता है। इस तकनीक का उपयोग वीर्य क्रायोप्रिजर्वेशन, कृत्रिम गर्भाधान, और भ्रूण प्रत्यर्पण जैसी प्रक्रियाओं में सफलतापूर्वक किया जा रहा है।
आईसीएआर-एनआरसीई का महत्वपूर्ण योगदान
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के इस केंद्र ने घोड़ों में सभी प्रकार की प्रजनन तकनीकों को मानकीकृत किया है। हाल ही में केंद्र ने मारवाड़ी और जांस्कारी घोड़ों में फ्रेश और फ्रोजन वीर्य का उपयोग कर भ्रूण प्रत्यर्पण से सफलतापूर्वक बच्चे पैदा किए हैं।
वैज्ञानिकों की उपलब्धि: घोड़ों के लिए नई उम्मीद
आईसीएआर-एनआरसीई के निदेशक डॉ. टीके भट्टाचार्य ने वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए कहा कि यह तकनीक देश में घोड़ों की घटती आबादी से निपटने में मदद करेगी। भ्रूण को क्रायोप्रिजर्वेशन के माध्यम से संरक्षित कर इसे उपयोग के स्थान पर आसानी से ले जाया जा सकता है और जरूरत पड़ने पर प्रत्यारोपित किया जा सकता है।
देश में अश्व संरक्षण का मिल का पत्थर
डॉ. एस सी मेहता ने भी वैज्ञानिकों को बधाई दी और कहा कि यह तकनीक देश के श्रेष्ठ अश्वों के संरक्षण और संवर्धन के लिए एक बड़ा कदम है। यह तकनीक घोड़ों की नस्लों को वर्षों बाद भी पुनः उत्पन्न करने में सक्षम बनाएगी, जिससे अश्व संरक्षण में यह एक मील का पत्थर साबित होगी।