AGR विवाद में सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख: टेलीकॉम कंपनियों की पुनर्गणना याचिका खारिज, ₹ 1 लाख करोड़ से अधिक का बकाया


के कुमार आहूजा  2024-09-20 20:00:04



AGR विवाद में सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख: टेलीकॉम कंपनियों की पुनर्गणना याचिका खारिज, ₹ 1 लाख करोड़ से अधिक का बकाया

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को टेलीकॉम कंपनियों की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) की पुनर्गणना की मांग की थी। यह मामला सरकार को बकाया भुगतान से जुड़ा है, जिसमें टेलीकॉम कंपनियों ने वित्तीय संकट का हवाला देते हुए राहत की मांग की थी। इस फैसले से वोडाफोन, भारती एयरटेल जैसी कंपनियों को बड़ा झटका लगा है, जिन पर कुल ₹ 1 लाख करोड़ से अधिक का बकाया है।

अदालत में कंपनियों का तर्क: पुनर्गणना की मांग

वोडाफोन इंडिया, भारती एयरटेल और अन्य टेलीकॉम कंपनियों ने कोर्ट में दायर की गई याचिका में दावा किया था कि AGR बकाया की गणना में दूरसंचार विभाग (DoT) से गंभीर त्रुटियां हुई हैं। कंपनियों का कहना था कि उनकी वास्तविक देनदारी सरकार द्वारा बताई गई राशि से काफी कम है। भारती एयरटेल का कहना था कि उनकी बकाया राशि केवल ₹ 13,004 करोड़ है, जबकि वोडाफोन ने अपने बकाया को ₹ 21,533 करोड़ बताया। इसके विपरीत, DoT ने भारती एयरटेल पर ₹ 43,980 करोड़ और वोडाफोन पर ₹ 58,254 करोड़ का दावा किया था।

AGR विवाद: लाइसेंस फीस और स्पेक्ट्रम शुल्क का गणित

AGR बकाया की गणना पर विवाद वर्षों से चला आ रहा है। यह बकाया टेलीकॉम कंपनियों द्वारा सरकार को दी जाने वाली लाइसेंस फीस और स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क पर आधारित होता है। DoT द्वारा सरकार के हिस्से की गणना AGR के आधार पर की जाती है, जिसमें 3 से 5 प्रतिशत स्पेक्ट्रम शुल्क और 8 प्रतिशत लाइसेंस फीस होती है। हालांकि, टेलीकॉम कंपनियों का कहना है कि AGR में केवल उनके कोर राजस्व को शामिल किया जाना चाहिए, जबकि सरकार इसमें गैर-टेलीकॉम स्रोतों से आने वाले राजस्व को भी शामिल करती है।

2019 का ऐतिहासिक फैसला और टेलीकॉम इंडस्ट्री पर प्रभाव

सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में इस मामले पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सरकार के पक्ष में निर्णय दिया था और टेलीकॉम कंपनियों को ₹ 92,000 करोड़ की राशि 180 दिनों के भीतर चुकाने का आदेश दिया था। इस फैसले ने टेलीकॉम इंडस्ट्री पर भारी वित्तीय बोझ डाला, जिसके परिणामस्वरूप वोडाफोन और भारती एयरटेल जैसी कंपनियों ने बड़े घाटे का सामना किया। इस फैसले के बाद टेलीकॉम सेक्टर में एक बड़ा संकट खड़ा हो गया, और कंपनियों की आर्थिक स्थिति और कमजोर हो गई।

AGR विवाद में देनदारी को टालने की कोशिशें

2022 में भारती एयरटेल ने कहा था कि उन्होंने लगभग ₹ 3,000 करोड़ की AGR देनदारी को चार साल के लिए टालने का फैसला किया है। इसी तरह, वोडाफोन ने भी ₹ 8,837 करोड़ की अतिरिक्त AGR देनदारी को चार साल तक टालने का निर्णय लिया। ये देनदारी उन वित्तीय वर्षों के लिए थी, जो सुप्रीम कोर्ट के 2019 के फैसले के दायरे में नहीं आते थे। DoT ने 2016/17 के बाद के दो वित्तीय वर्षों के लिए अतिरिक्त AGR मांग उठाई थी, जिसने टेलीकॉम कंपनियों पर और दबाव डाला।

सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला: राहत की कोई उम्मीद नहीं

टेलीकॉम कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट के 2019 और 2020 के आदेशों के खिलाफ पुनर्गणना की याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने सरकार द्वारा लगाए गए 'मनमाने दंड' और गलत गणना पर सवाल उठाए थे। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट कर दिया कि बकाया की पुनर्गणना या किसी भी प्रकार की राहत संभव नहीं है। कोर्ट ने कहा कि AGR की गणना में कोई गंभीर त्रुटि नहीं है और कंपनियों को बकाया भुगतान के लिए 10 साल की समय सीमा दी गई है, जिसमें हर साल 10 प्रतिशत राशि चुकानी होगी।


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