भ्रष्टाचार हमारी रग- रग में घर कर चुका है। नेता कितना भी चिल्लाते रहे कि देश को भृष्टाचार से मुक्त करना है जो सम्भव दिखाई नहीं देता। क्योंकि ऊपर से लेकर नीचे तक भृष्टाचार की गंगा बह रही है


के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा  2024-09-17 20:10:17



भ्रष्टाचार को शिष्टाचार में बदला जाये ! 

 

हर कोई जानता है कि देश में भ्रष्टाचार पूर्ण रूप से व्याप्त है। बिना पैसा दिये कही कोई काम हो नहीं सकता। सरकार भी जानती है और सरकार चलाने वाले नुमाइन्दे भी। सबको दिखाई देता है कि ड्राइविंग लाइसेंस के लिए, वाहन के रजिट्रेशन के लिये दलालों को सेवा शुल्क देना होता है। फिटनेस सर्टिफिकेट के लिए डाक्टरों को खुश करना पड़ता है। कोर्ट में तारीख़ लेने के लिए पेशकार को नज़राना देना पड़ता है। ज़मीन का पट्टा लेने, भूमि रूपरांतरण करवाने, मकान बनाने की इज्ज़ाजत तामीर लेने, के लिए निगम- न्यास के कर्मचारियों को भेंट देनी होती है। सही काम के लिए तो सेवा शुल्क लगता ही है। लेकिन नाजायज़ कामों के लिए ढेर सारी रक़म देनी होती है। मसलन शराब की दुकान खोलना, बार शुरू करना, सरकारी भूमि पर अतिक्रमण कर निर्माण कार्य करना, बिना इजाज़त बेसमेंट बनाना, ऐसे बहुत से काम है जिनके लिए ढेर सारी रक़म खर्च करनी पड़ती है। कोई भी विभाग गंगाजल से धुला नहीं है जहाँ भ्रष्टाचार न हो। चाहे वो पुलिस का महकमा हो, निगम- न्यास का ऑफिस हो, आरटीओ- जीएसटी का ऑफिस हो, रेवन्यू कार्यालय हो, पटवारी- ग्राम सेवक हो - ये विभाग भ्रष्टाचार के लिए काफ़ी बदनाम है। इधर राजनीति का भी यही हाल है बिना आलाकमान को खुश किए चुनाव लड़ने की टिकट नहीं मिलती। राजनीति भी भरोसे लायक़ नहीं है। सही बात तो यह है कि भ्रष्टाचार हमारी रग- रग में घर कर चुका है। नेता कितना भी चिल्लाते रहे कि देश को भृष्टाचार से मुक्त करना है जो सम्भव दिखाई नहीं देता। क्योंकि ऊपर से लेकर नीचे तक भृष्टाचार की गंगा बह रही है अधिकांश लोग इस गंगा में स्नान कर अपने को पवित्र समझ रहे है। याद आती है लाल बहादुर शास्त्री की- गुलज़ारी लाल नंदा की और अपने क्षेत्र में मुरलीधर व्यास की- केदार जी की- महबूब अली की - ऐसी शूचिता पूर्ण राजनीति करने वाले नेता राजनीति में अब कहाँ मिलेंगे ? हमने तो राजस्थान नहर के मुख्य अभियंता शाह साहब- शारदा जी को देखा है जो निजी काम के लिए कभी भी सरकारी गाड़ी का उपयोग नहीं करते थे। हमने ऐसे कई कलेक्टर भी देखे है जो अपने घर से पैदल अपने कार्यालय जाते थे। अब तो आप ब्यूरक्रेशी और नेताओ के ठाट- बाट देखिए। इनका रूतबा देखिये। राजाओ के ठाट- बाट इनके रूतबे के आगे शर्मिन्दा हो जाएँगे। नेताओ और ब्यूरोक्रेशी ने हाथ जो मिला लिए हैं मिल- बाँट कर चलेंगे। इसलिए भ्रष्टाचार को शिष्टाचार बना देना चाहिये। ताकि उसे क़ानूनी रूप मिल जाये। कोई झिझक न रहे, कोई डर न रहे। कोई इस पर उँगली भी नहीं उठायेगा। छिप- छिप कर क्या लेना, सबके सामने लेना। ससम्मान लेना। देने वाले को भी आनन्द, लेने वालों को भी आनंद। जो कुछ होगा क़ानूनी और नियम क़ायदे में होंगा। सबसे बड़ी बात भ्रष्टाचार के दाग से देश मुक्त होंगा। चिंतक, विचारक, लेखक  संपादक बीकानेर एक्सप्रेस पूर्व  pro ——मनोहर चावला की कलम से


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