बीकानेर में अखिल भारतीय साहित्य परिषद की चिंतन बैठक: भारतीय संस्कृति के पुनर्स्थापन पर हुआ गहन मंथन


के कुमार आहूजा  2024-09-12 09:42:34



बीकानेर में अखिल भारतीय साहित्य परिषद की चिंतन बैठक: भारतीय संस्कृति के पुनर्स्थापन पर हुआ गहन मंथन

भारतीय संस्कृति और सभ्यता को वैश्विक पटल पर स्थापित करने की आवश्यकता आज के युग की सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। साहित्य, विचार, और विमर्श के माध्यम से युवाओं को भारतीयता से जोड़ने का महत्त्व आज पहले से कहीं अधिक हो गया है। बीकानेर में आयोजित अखिल भारतीय साहित्य परिषद की चिंतन बैठक में इस दिशा में कदम उठाने की गहन चर्चा की गई। बैठक में उपस्थित साहित्य प्रेमियों और विचारकों ने संस्कृति और साहित्य के कुरूप होते स्वरूप, समाज को विभाजित करने वाली प्रवृत्तियों, और बाजारवाद के बढ़ते प्रभाव पर विचार व्यक्त किए। आइए, इस ऐतिहासिक बैठक के हर पहलू को विस्तार से समझते हैं।

भारतीय संस्कृति की स्थापना के लिए युवाओं को जोड़ने की आवश्यकता

अखिल भारतीय साहित्य परिषद की बैठक का मुख्य उद्देश्य भारतीय संस्कृति और सभ्यता को वैश्विक मंच पर पुनर्स्थापित करना था। राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री मनोज कुमार ने इस अवसर पर कहा कि राष्ट्रबोध, स्व का बोध और भारतीय संस्कृति से जुड़े विमर्श और साहित्य का सृजन आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। उन्होंने यह भी बताया कि जब तक हम युवा पीढ़ी को साहित्य और संस्कृति के प्रति जागरूक नहीं करेंगे, तब तक भारतीयता का प्रसार कठिन होगा। इस बैठक में युवाओं को भारतीय साहित्य से जोड़ने की दिशा में विशेष रूप से चर्चा की गई।

साहित्य में बढ़ती कुरूपता और समाज तोड़ने वाली प्रवृत्तियों पर मंथन

चिंतन बैठक में प्रमुख रूप से इस बात पर ध्यान दिया गया कि साहित्य में नकारात्मकता, समाज को तोड़ने वाली लेखनी और बाजारवाद का अत्यधिक प्रभाव बढ़ता जा रहा है। मनोज कुमार ने इस बात पर जोर दिया कि आजकल के साहित्य में सिर्फ सम्मान पाने के लिए लेखन हो रहा है, जिससे साहित्य की गुणवत्ता में गिरावट आई है। समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के बजाय, कई साहित्यिक कृतियां समाज को विभाजित करने का काम कर रही हैं, जो चिंता का विषय है।

भारतीय भाषाओं में साहित्य का सृजन और अनुवाद का महत्व

बैठक में यह भी चर्चा हुई कि भारतीय भाषाओं में साहित्य का सृजन करना और उसे विभिन्न भाषाओं में अनुवादित कर विश्वस्तरीय बनाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। मनोज कुमार ने कहा कि हमें भारतीयता और भारतीय संस्कृति के सन्दर्भों को पुरोहित रूप से प्रकाशित करना होगा और इसके लिए हमें युवाओं के बीच जाना होगा। उन्होंने यह भी बताया कि अच्छे साहित्य का अनुवाद करके उसे विश्व की भाषाओं में पहुंचाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए ताकि भारत की संस्कृति और सभ्यता का प्रसार हो सके।

चिंतन बैठक में उपस्थित प्रमुख व्यक्तित्व

बीकानेर में आयोजित इस बैठक में प्रांत के सभी प्रमुख पदाधिकारियों की उपस्थिति ने इसे और महत्वपूर्ण बना दिया। प्रांत अध्यक्ष डॉ. अखिलानंद पाठक ने बताया कि यह मनोज कुमार का बीकानेर में पहला प्रवास था। इस विशेष अवसर पर क्षेत्रीय अध्यक्ष डॉ. अन्नाराम शर्मा ने उनका अंग वस्त्र ओढ़ाकर स्वागत किया। बैठक में क्षेत्रीय संगठन मंत्री डॉ. विपिनचंद्र पाठक, प्रांत महामंत्री डॉ. लालाराम प्रजापत, और प्रांत के उपाध्यक्ष, मीडिया प्रमुख, विभाग संयोजक तथा स्थानीय इकाई के प्रमुख पदाधिकारी भी उपस्थित रहे।

युवाओं को साहित्य के प्रति जागरूक करने के प्रयास

बैठक में इस बात पर भी बल दिया गया कि युवाओं को साहित्य सृजन और पठन के प्रति जागरूक करना अत्यंत आवश्यक है। मनोज कुमार ने इस दिशा में पहल करते हुए कहा कि हमें युवाओं को साहित्य सृजन हेतु प्रशिक्षित करना होगा ताकि वे न केवल साहित्य पढ़ें, बल्कि उसे लिखने और समझने में भी सक्षम हों। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि नव भारतीय साहित्य का निर्माण किया जाना चाहिए और इसे पाठकों के बीच लाने के लिए विशेष प्रयास किए जाने चाहिए।

बाजारवाद और सम्मान के लिए लेखन की होड़ पर चर्चा

चिंतन बैठक में यह बात भी उभरकर सामने आई कि साहित्य में बाजारवाद का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। कई लेखक आज सिर्फ सम्मान पाने के लिए लिख रहे हैं, जो साहित्य की मूल भावना को कमजोर कर रहा है। इस प्रवृत्ति पर मंथन करते हुए मनोज कुमार ने कहा कि साहित्य केवल सम्मान के लिए नहीं, बल्कि समाज के निर्माण और सकारात्मक बदलाव के लिए होना चाहिए। उन्होंने साहित्यिक कुरूपता और समाज तोड़ने वाली लेखनी की कड़ी आलोचना की और इस दिशा में सुधार की आवश्यकता जताई।

भारतीयता का प्रसार और साहित्य की भूमिका

बैठक में यह भी चर्चा की गई कि भारतीयता का प्रसार केवल साहित्य और संस्कृति के माध्यम से ही संभव है। भारतीय साहित्य और संस्कृति को वैश्विक मंच पर लाने के लिए अच्छे साहित्य का निर्माण और उसका अनुवाद आवश्यक है। मनोज कुमार ने इस बात पर जोर दिया कि हमें विश्व की भाषाओं में भारतीय साहित्य का अनुवाद कर उसे व्यापक स्तर पर प्रस्तुत करना चाहिए, ताकि भारत की सांस्कृतिक धरोहर को विश्वभर में पहचाना जा सके।

साहित्य परिषद की चिंतन बैठक के निष्कर्ष

अखिल भारतीय साहित्य परिषद की इस चिंतन बैठक के निष्कर्ष स्वरूप यह तय किया गया कि भारतीय संस्कृति और साहित्य का पुनर्स्थापन तभी संभव है जब हम युवाओं को इसके प्रति जागरूक करें और उन्हें साहित्य के सृजन और पठन से जोड़ें। इसके लिए नव साहित्य का निर्माण, उसका अनुवाद और वैश्विक मंच पर उसका प्रसार आवश्यक है। यह बैठक भारतीय साहित्य और संस्कृति के प्रसार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।


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