सटीक, निर्भीक, निष्पक्ष और निडर बात राजनीति में कभी अपने बाप पर भी विश्वास न करना !
के कुमार आहूजा 2024-09-09 14:40:58
सटीक, निर्भीक, निष्पक्ष और निडर बात राजनीति में कभी अपने बाप पर भी विश्वास न करना !
सुबह- शाम हम लोग आपस में यही चर्चा करते है। कि सरकार हमारे लिए क्या कर रही हैं ? कभी हम पहली वाली सरकार की प्रसंशा करते है, कभी इस सरकार की। कभी अशोक गहलोत को याद करते है तो कभी वसुन्धरा जी को। और अब भजनलाल जी को। जनता यह क्यों नहीं समझती कि ये नेता लोग राजनीति के माहिर खिलाड़ी होते है। राज करने आते हैं जनता की सेवा करने नहीं। उन्हें किसी न किसी तरीक़े से कुर्सी हथियानी होती हैं। इसके लिए वे किसी भी हद को पार कर सकते है। मीठी- मीठी घोषणाएँ कर , आपको बरगला कर , आपका अमूल्य वोट ले लेते है। फिर कुर्सी हथियाने के बाद वे आपसे दर- किनार हो जाते है। कोई भी दल या पार्टी हो , बस एक ही मक़सद होता है कुर्सी हथियाना- फिरे अपना और परिजनों का घर भरना-और ऊपर से देश प्रेम का दिखावा कर ,जनता की सेवा करने की झूठी घोषणाएँ करना-मक़सद रह जाता है। मज़े की बात यह— जीतने- हारने वाले दल अंदरूनी रूप से आपस में मिले हुए होते है। बाहर यें लोग एक दूसरे पर आरोप- प्रत्यारोप करते है अन्दर से यह एक ही होते है। सुबह जिसके गले पड़े, शाम को उसके गले मिले। यह यहाँ की नियति है ख़ैर, यही तो राजनीति है और राजनीति में कभी भी किसी पर भरोसा नहीं करना चाहिए। अपने बाप पर भी नहीं ! आचार्य रजनीश ने इस राजनीति के सम्बन्ध मी कहीं लिखा भी था कि राजनीति विश्वास के कभी क़ाबिल नहीं होती। उन्होंने उदाहरण दिया कि एक पुत्र का पिता राजनीतिक था उनकी अच्छी ख्याति थी लोग उन्हें बहुत पूछते थे , पूजते थे। पुत्र बहुत प्रभावित था स्कूल में पढ़ता था। वह यह सब देखकर पिता से सवाल कर उठा कि मैं भी आपकी तरह रजनीतिक्ष बनूँगा। मुझे पढ़ाई- बढ़ाई नहीं करनी। पिता ने उसे काफ़ी समझाया , बेटा नहीं माना। आख़िरकार पिता ने हारकर कहा , ठीक है। मैं तुम्हें राजनीति का पहला पाठ बतलाता हूँ। ऐसा करो तुम सीढ़ी से तीसरी मंज़िल पर चढ़ जाओ। पुत्र ने वैसा ही किया। पिता ने वहाँ से सीढ़ी हटा ली और बेटे को कहा कि अब ऊपर से कूदू। बेटे ने कहा , क्या बात करते हो पिता जी, आपने सीढ़ी तो हटा ली हैं। मैं नीचे कैसे आऊँगा? पिता ने कहा , मैं हूँ न ! मैं तुम्हें अपने दोनों हाथो में सम्भाल लूँगा। बेटे ने वैसा ही किया पिता की बातो पर विश्वास करते हुए तीसरी मंज़िल से छलांग लगा दी। पिता ने उसे नहीं सम्भाला और उसकी टाँगे टूट गई। बेटे ने रोते हुए कहा कि पिताजी आपने कहा था कि आप मुझे सम्भाल लेंगे? पिता ने कहा बेटा कि यही तो राजनीति का पहला पाठ हैं। कि राजनीति में कभी अपने पिता पर भी विश्वास न करना। जबकि हमारी बेचारी भोली- भाली जनता है जो फ़ौरन इन राजनीतिकों की मीठी और चिकनी- चुपड़ी बातो में आ जाती हैं। और इन पर पूर्ण विश्वास कर लेती हैं और फिर ता- उम्र रोती हैं। इसलिए पहले अपने आपको सम्भालो, इन्हें ठोक- बजा कर परखो, फिर इनकी बातो में आओ। अब आप याद कीजिए कि बीकानेर रेल फाटको की समस्या समाधान की बाते सुनते सुनते हम जीवन के अन्तिम क्षणों में पहुँच गये और कोई भी समाधान नहीं हुआ। नेता आपको मीठी गोली देते रहे। यह आपके लिए राजनीति में कभी विश्वास न करने का सबक़ नहीं है क्या ?सटीक, निर्भीक, निष्पक्ष और निडर बात राजनीति में कभी अपने बाप पर भी विश्वास न करना ! पूर्व pro, संपादक बीकानेर एक्सप्रेस——— मनोहर चावला